Lockdown : कहीं खुशी, कहीं गम

लखनऊ। कोरोना महामारी से निपटने के लिए मोदी सरकार ने पूरे देश में जो लाॅक डाउन किया था,उसका दूसरा फेस खत्म होने की भी समय सीमा करीब आ गई है। 03 मई को यह समय सीमा समाप्त हो जाएगी। तीन मई के बाद क्या होगा,इसको लेकर लोगों के दिलो-दिमाग में तमाम तरह के सवाल घूम रहे है। सबसे अहम सवाल तो यही है कि क्या लाॅग डाउन की मियाद आगे बढ़ेगी ? इसी प्रकार टेªन और हवाई यात्रा कब से शुरू होगी इसको लेकर भी लोग चिंतित हैं। मल्टीनेशनल कम्पनियों में काम करने वालेे युवक-युवती को समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें कब तक घर से काम करना पड़ेगा। इंदरमीडियट पास करने के बाद जो छात्र/छात्राएं डाक्टरी या इंजीनियरिंग अथवा एमबीए आदि के कोर्स करने के इच्छुक हैं,उन्हें प्रतियोगी परीक्षाएं कब शुरू होंगी इस बात की फिक्र है। यही हाल छोटी-छोटी दुकानों से लेकर निर्माण कार्यो में दिहाड़ी मजदूरी करने वालों, सड़क पर ठेला लगाकर छोटा-मोटा सामान बेचने वालों,टैम्पों,रिक्शा या कार्मिर्शयल वाहन चलाने वालों, रिपेयरिंग का काम करने वालों आदि का है,जो महीने भर से अधिक समय से घरों में खाली बैठे हैं।

महीने से ऊपर का वक्त हो गया है जब जीवन की रफ्तार थम सी गई है। कहने में भले अच्छा लगता हो कि लाॅक डाउन के दौरान हमें घर पर अपनों के साथ समय बिताने का मौका मिल गया,लेकिन यह सिक्के का एक ही पहलू है,जिसके पेट भरे हैं,वह तो ऐसा सोच सकता है,लेकिन जो परिवार लाॅक डाउन के चलते दाने-दाने को मोहताज हो गया हों,उसके लिए रिश्तों की बात बेइमानी हो जाती है। लोगों का लाॅक डाउन में अच्छे कम और बुरे अनुभवों से ज्यादा सामना हो रहा हैं। यह गलतफहमी किसी को नहीं पालना चाहिए कि लाॅक डाउन ने हमें परिवार, दोस्तों और सहयोगियों के साथ रिश्तों में फिर से सामंजस्य बैठाने का मौका प्रदान कर दिया है। क्योंकि जिन्हें रिश्ते निभाने होते हैं उनके लिए समय की पाबंदी कभी नहीं रहती है और जो नहीं निभाते हैं उनके लिए क्या लाॅक डाउन और क्या आम दिन,सब एक बराबर हैं।



कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के प्रयास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से 25 मार्च से देशव्यापी बंद की घोषणा के बाद से भारत में लॉकडाउन लागू है। उसके बाद से अब तक गुजरे दिनों में, सवा सौ करोड़ भारतीय, केंद्रीय स्थानों और दूरस्थ कोनों में बसे अमीर और गरीब, सभी ने दुनिया भर में फैली महामारी के डर का सामना किया है। तीन मई तक बढ़ाए गए बंद की बेचैनी से कोई भी अछूता नहीं है, न तो शानदार कोठियों में रह रहे रईस कारोबारी, न घरों में बंद मध्यम वर्ग और न ही किराये के छोटे-छोटे घरों में दिहाड़ी मजदूर। भय की यह स्थिति भले ही सबके लिए सामान्य हो लेकिन इनके बीच की असमानताओं का फर्क भी तुरंत देखने को मिला। बंद लागू होते है जहां लाखों लोग अपने घरों में कैद रहने पर मजबूर हो गए, वहीं प्रवासी और दिहाड़ी मजदूर जो अपने घरों से मीलों दूर फंसे हुए थे, उनका भविष्य अनिश्चितताओं मे घिर गया। जहां न उनके पास पैसा है, न खाना और न नौकरी।


ज्यातार मध्यम एवं ऊपरी वर्ग के परिवार अपने करीबियों के साथ इतना समय बिताने को एक चुनौती की तरह देख रहे हैं और कई उनके बिना अलग-थलग पड़ अवसाद झेल रहे हैं। जीवन के नये तरीके के अनुकूल ढलना-घरेलू सहायक-सहायिकाओं की मदद के बिना घर का सारा काम करना, घर से बाहर निकलने के लिए तैयार होने की जरूरत से मिली मुक्ति और दिन भर घर के अंदर रहना आम-खास सभी के जिंदगी का हिस्सा बन गया है। हाॅ,लाॅक डाउन ने यह आईना जरूर दिखा दिया की कोई भी व्यक्ति अल्पतम जरूरतों के साथ और दुनिया में व्याप्त वस्तुवाद के बिना भी गुजारा कर सकता है। बंद के इन दिनों को लोग जीवन भर याद रखेंगे और इसने सामजिक दूरी बनाए रखने की जरूरत के मद्देनजक सामाजिक संवाद, त्योहारों का जश्न और यहां तक कि शोक मनाने के नये तरीके भी सीखे हैं। कई लोगों ने माना कि यह उनकी ताकतों को फिर से आंकने और कई बार छिपी हुए प्रतिभाओं को सामने लाने की भी अवसर है। कुल मिलाकर लाॅकडाउन कहीं खुशी कहीं गम लेकर आया।


रिपोर्ट-अजय कुमार