रवि प्रदोष व्रत: इस प्रदोष व्रत से शंकर जी होते हैं प्रसन्न...

शास्त्रों में प्रदोष व्रत को बहुत महत्व दिया गया है। रविवार को आने प्रदोष को रवि प्रदोष कहा जाता है। रवि प्रदोष व्रत से न केवल शंकर जी प्रसन्न होते हैं बल्कि व्यक्ति के पाप भी नष्ट होते हैं तो आइए हम आपको रवि प्रदोष की पूजा-विधि और कथा के बारे में बताते हैं। 



जानें रवि प्रदोष के बारे में-
हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। उत्तर भारत में इसे प्रदोष व्रत तथा दक्षिण भारत में प्रदोषम कहा जाता है। प्रदोष व्रत हर महीने की शुक्ल एवं कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है। प्रदोष का हमेशा अलग-अलग दिन पड़ता है। सप्ताह के विभिन्न दिनों पर पड़ने के कारण प्रदोष का महत्व भी बदल जाता है। इस बार प्रदोष रविवार को पड़ रहा है इसे रवि प्रदोष या भानु वारा प्रदोष कहते हैं। 


24 नवंबर को पड़ने वाला रवि प्रदोष व्रत इस वर्ष का आखिरी रवि प्रदोष व्रत है। इसके बाद अप्रैल 2020 में रवि प्रदोष बनेगा। रवि प्रदोष के दिन शिव जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी विशेष आराधना की जाती है।


रवि प्रदोष का महत्व-
मनुष्य के जीवन रवि प्रदोष का खास महत्व है। रवि प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और वह दीर्घायु तथा सुखी जीवन व्यतीत करता है।  
 
कैसे करें पूजा- 
रवि प्रदोष व्रत विशेष मनोकामना की पूर्ति हेतु खास होता है। अगर आप स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयों से परेशान है तो यह व्रत अवश्य करें। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें। इस दिन अन्न न खाएं केवल फलाहार लें। साथ ही रवि प्रदोष के दिन नमक न खाना भी आपके लिए फायदेमंद होगा। इस व्रत से न केवल मनुष्य निरोगी होता है बल्कि सभी प्रकार के पापों से भी मुक्ति मिलती है। 
 
पूजा करने के लिए मंदिर को साफ करें और एक कलश में जल भर लें। उसके बाद थाली में सफेद फूल, धतूरा, फल और बेल पत्र रखें। इसके बाद दिन भर ऊं नमः शिवाय का जाप करें। फिर शाम को सूर्यास्त के बाद दुबारा स्नान करके शिव जी षोडषोपचार पूजन करें। ध्यान रखें कि रवि प्रदोष की पूजा शाम 4.30 से 7 बजे के बीच में करें। 


रवि प्रदोष से जुड़ी कथा-
रवि प्रदोष से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। उस कथा के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था। एक बार वह गंगा स्नान के लिए जा रहा था तभी लुटेरे उसे मिल गए उन्होंने उसे पकड़ लिया और पूछा कि तुम्हारे पिता ने गुप्त धन कहां छुपा रखा है। इससे बालक डरकर बोला कि वह बहुत गरीब है उसके पास कोई धन नहीं है। तब लुटेरों ने उसे छोड़ दिया। वह घर वापस आने लगा कि तभी थकने के कारण पेड़ के नीचे सो गया और राजा के सिपाहियों ने उसे लुटेरा समझ कर पकड़ लिया और जेल में डाल दिया। इधर गरीब ब्राह्मणी ने दूसरे दिन प्रदोष का व्रत किया और शिव जी से अपनी बालक की वापसी की प्रार्थना करते हुए पूजा की। 
 
शिव जी ब्राह्मणी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर राजा को सपने में बताया कि वह बाल जिसे तुमने पकड़ा है वह निर्दोष है उसे छोड़ दो। दूसरे दिन राजा ने बालक के माता-पिता को बुलाकर न केवल बालक को छोड़ दिया बल्कि उनकी दरिद्रता दूर करने के लिए उन्हें पांच गांव भी दान में दे दिए। इस तरह प्रदोष व्रत के प्रभाव से न केवल ब्राह्मण का बेटा मिला बल्कि उनकी गरीबी भी दूर हो गयी।