अपराजिता पूजन बिना अधूरी है शारदीय नवरात्र...

दशहरा के दिन दुर्गा मां की विदाई से पहले अपराजिता पूजन किया जाता है। शारदीय नवरात्र अपराजिता पूजन के बिना अधूरा माना जाता है। इस पूजा से कभी असफलता नहीं मिलती। विजयादशमी के दुर्गा पूजा का खास महत्व होता है। तो आइए हम आपको अपराजिता पूजन के बारे में बताते हैं विस्तार से-



जानें अपराजिता पूजा के बारे में-
जब चारों युगों का प्रारम्भ हुआ था तब से अपराजिता पूजन की जाती है। देवी अपराजिता की पूजा देवता करते थे तथा ब्रह्म, विष्णु नित्य देवी का ध्यान करते हैं। देवी अपराजिता को दुर्गा का अवतार माना जाता है और विजयादशमी के दिन अपराजिता पूजा की जाती है।


खास जगह पर करें अपराजिता पूजा-
अपराजिता पूजा करने के लिए घर के पूर्वोत्तर दिशा में कोई स्थान चुन लें। पूजा का स्थान किसी बगीचे या मंदिर के आसपास भी हो सकती है। पूजा के स्थान को साफ करें और चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र बनाएं। पुष्प तथा अक्षत के साथ अपराजिता की पूजा का संकल्प लें।
 
मां दुर्गा की विदाई से पहले होती है अपराजिता पूजा-
ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं उन्हें विजयादशमी के दिन मां अपराजिता की पूजा अवश्य करनी चाहिए। देवी अपराजिता की उपासना के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है इसलिए विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की विदाई से पूर्व अपराजिता के फूल से मां की पूजा कर उनसे अभयदाय मांगा जाता है। इस तरह की आराधना से देवी प्रसन्न होकर विजयी होने का आर्शीवाद प्रदान करती हैं। साथ ही बंगाल के कुछ हिस्सों में प्रतिमा विसर्जन से पहले सुहागिन औरतें मां दुर्गा को अपना सिंदूर अर्पित कर अक्षय सुहाग की कामना करती हैं। इस तरह विसर्जन यात्रा में महिलाएं सिंदूरखेला करती है। इस प्रकार दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के बाद श्रद्धालुओं पर जल का छिड़काव किया जाता है।


कैसे करें अपराजिता पूजा-
अपराजिता पूजा का मुहूर्त स्वयंद्धि मुहूर्त माना जाता है इसलिए इस मुहूर्त में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। इस साल दशमी तिथि मंगलवार को पड़ रही है। यह बहुत शुभ दिन है, इस दिन अपराजिता स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। अपराजिता के नीले फूल से देवी अपराजिता की पूजा करने से अपराजित रहने का वरदान मिलता है। अपराजिता की पूजा के बाद माएं अपनी बच्चों की कलाई पर अपराजित की बेल लपेटकर हमेशा उनके दीर्घायु होने का आर्शीवाद देती हैं। इसके बाद अपराजिता के फूलों को स्त्री और पुरुष अपने माथे पर लगाते हैं। इसे सौभाग्य का सूचक माना जाता है।


अपराजिता पूजा का मुहूर्त-
अपराजिता पूजा सामान्यतः दोपहर के बाद और सांयकाल से पहले की जाती है। यात्रा प्रारम्भ करने से पहले यदि अपराजिता देवी की उपासना की जाती है तो यात्रा हमेशा सफल होती है।


श्रीराम ने भी की थी अपराजिता पूजा
अपराजिता पूजा सभी कार्यों में सफलता दिलाती है। श्रीराम चन्द्र जी ने रावण का वध करने से पर्व देवी अपराजिता की आराधना की थी। देवी की आराधना का विशेष महत्व श्रीरामचन्द्र जी की उपासना के कारण भी है।